Supreme Court: मकान मालिक और किराएदार के बीच संबंध अक्सर तनावपूर्ण हो सकते हैं। कई बार यह विवाद न्यायालय तक पहुंच जाता है। हाल ही में एक ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट में आया, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि मकान का असली मालिक केवल लैंडलॉर्ड ही होता है, भले ही किराएदार कितने भी समय से वहां रह रहा हो।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में एक किराएदार ने लगभग तीन वर्षों से अपने मकान मालिक को किराया नहीं दिया था। इतना ही नहीं, वह दुकान खाली करने के लिए भी तैयार नहीं था। परेशान होकर मकान मालिक को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। निचली अदालत ने किराएदार को न केवल बकाया किराया चुकाने का आदेश दिया, बल्कि दो महीने के भीतर दुकान खाली करने का भी निर्देश दिया। साथ ही, वाद दाखिल होने से लेकर परिसर खाली करने तक 35 हजार रुपये प्रति माह किराये का भुगतान करने का आदेश भी दिया गया।
हाईकोर्ट का फैसला
जब किराएदार ने निचली अदालत के आदेश का पालन नहीं किया, तो मामला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंचा। पिछले साल जनवरी में हाईकोर्ट ने किराएदार को लगभग नौ लाख रुपये जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया था। लेकिन किराएदार ने इस आदेश का भी पालन नहीं किया, जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार दिनेश को किसी भी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया और आदेश दिया कि उन्हें परिसर तुरंत खाली करना होगा। साथ ही, कोर्ट ने उन्हें जल्द से जल्द बकाया किराया जमा करने का भी निर्देश दिया।
किराएदार के वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से अनुरोध किया कि उनके मुवक्किल को बकाया किराया जमा करने के लिए कुछ समय दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए समय देने से इनकार कर दिया कि जिस तरह से किराएदार ने मकान मालिक को परेशान किया है, उसके बाद कोर्ट किसी भी प्रकार की राहत नहीं दे सकता।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, “जिसके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं मारते।” इस फैसले के साथ ही एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि मकान मालिक ही किसी मकान का असली मालिक होता है। किराएदार चाहे जितने दिन किसी मकान में रहे, उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि वह मात्र एक किराएदार है, न कि मकान का मालिक।
फैसले का महत्व
यह फैसला मकान मालिकों के अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है और स्पष्ट करता है कि किराएदारों को अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय किराएदार-मकान मालिक के विवादों में एक महत्वपूर्ण मिसाल है, जो दर्शाता है कि न्यायालय किराए के समझौतों का सम्मान करने और संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करने के पक्ष में है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। किसी भी कानूनी मामले में विशेषज्ञ वकील की सलाह लेना उचित होगा।